Thursday, April 18, 2019

real love story

के साथ खुली | हाथों में गुलदस्ता और एक प्यारी मुस्कान लिए सामने खडी थी, नेहा | नीला सूट, सफ़ेद चुनरी, काली बिंदी और झुमके पहने, नेहा | मै उसे एक पल देखता ही रह गया | कितनी सुन्दर लग रही थी | उसने आगे बढ़कर मुझे गुलदस्ता दिया और मुस्कुराते हुए मैंने उसे शुक्रिया कहा | “मेरा जन्मदिन तुम्हे याद था?” मैंने पूछा? “बिलकुल | हमारी शादी की सालगिराह के ठीक ६: महीने बाद तुम्हारा जन्मदिन आता है | वैसे भी मुझे सब याद रहता है | तुम्हारी तरह नही हूँ कि हर चीज़ याद दिलानी पड़े” | नेहा ने शरारती अंदाज़ में कहा | इससे पहले मै कुछ कहता वह फिर बोल पड़ी | “सुनो मैंने इडली-साम्भर, लस्सी, ब्रेड-रोल और रसमलाई बनाई है तुम्हारे लिए, वह भी सुबह जल्दी उठकर | इसलिए जल्दी बाहर आ जाओ और सुन लो जैसी भी बनी हो तारीफ़ करनी पड़ेगी” | किसी जीते हुए योद्धा की भाँति उसने मुझे छेडा और हँसते हुए बाहर चली गई |
            ऎसी ही थी मेरी नेहा | शादी के बाद विदाई के समय उसकी आँखों में आँसू देखे थे |  उसके बाद मै कभी भी समझ नही पाया कि कोई इतना खुश कैसे रह सकता है | अपने आस पास जहाँ हर आदमी अपनी छोटी से छोटी समस्या में भी दुखी दिखाई पड़ता है, वही नेहा अपनी सभी परेशानियों में भी हर दिन और चुलबुली होती गई | उसके अन्दर पत्थर को भी हँसाने की ताकत थी | उसके लिए असीम प्रेम और इज्ज़त का भाव लिए मै दफ्तर के लिए तैयार हो गया और बाहर पहुँचा | नेहा मेज़ पर बैठी अपने फोन पर कुछ लिख रही थी | मेज़ को उसने कितने करीने से सजाया था | उसने मुझे देखा और एक तंज़ दाग दिया | “कितनी देर से इंतज़ार कर रही हूँ | बहुत भूख लग रही है और तुम इतनी देर से आ रहे हो” | “तुमने अभी तक कुछ नही खाया? पर क्यों?” मैंने पुछा | वह बस मुस्कुरा दी और मेरी थाली में इडली परोसने लगी | “आज तुमे क्या तोहफा चाहिए? शाम को दफ्तर से लौटते समय लेकर आउंगी” | उसने मुझसे पूछा |
हम अपनी ज़िंदगी में इतना व्यस्त हो चले है कि अपने प्रियजनों के लिए भी ठीक से समय नही निकाल पाते | नेहा के जवाब में मैंने कहा “मै तुम्हारा थोड़ा समय माँगता हूँ | आज शाम कही बाहर चलते है | साथ-साथ सिर्फ हम-तुम” | नेहा हँस पड़ी और कहा “दिया | मैंने अपना सारा समय तुम्हे दिया | तो यह तय रहा, शाम को तुम मुझे दफ्तर से लेने आओगे और फिर हम खाना खाने मुगलई रेस्तरा चलेंगे”| नेहा को दफ्तर छोड़ने के पश्चात जब मै वहाँ से जाने लगा तो मैंने देखा नेहा एक टक होकर व्याकुलता से मुझे देख रही थी| मै कुछ समझ नही पाया | मानो वह कह रही हो कि रुक जाओ साहिल, मुझे छोडकर मत जाओ| परन्तु मैंने गाड़ी घुमाई और अपने दफ्तर की ओर चल पडा| पर काश मैंने उसकी बात मान ली होती|
शाम को मै दफ्तर से निकल ही रहा था कि अचानक एक अति महत्त्वपूर्ण काम आ गया जिसके कारण मुझे दफ्तर में कुछ देर के लिए और रुकना पडा| मैंने यह बात नेहा को भी बताई कि मै उसे लेने नहीं आ पाउँगा और उससे कहा कि वह खुद ही मुगलई रेस्तरां पहुँचे| मेरे नेहा को यह बात बताने के बाद वह कुछ बोली नही और न ही संपर्क काटा| उसने बस इतना कहकर अपना भ्रमणभाष रख दिया कि “ठीक है, पर इसकी सज़ा मिलेगी तुम्हे” | कुछ अंतराल के बाद मै उस रेस्तरां में पहुँचा| नेहा को वहाँ न पाकर मै उसका इंतज़ार करने लगा| मैंने नेहा के भ्रमणभाष पर कई बार संपर्क स्थापित करने की कोशिश की परन्तु वह बंद था| मै समझ गया कि यह नेहा की नाराज़गी से उत्पन्न शरारत होगी कि मै उसे लेने नही आया और इसलिए मै नेहा के दफ्तर चला गया| वहाँ मुझे पता चला कि नेहा १ घंटे पूर्व ही वहाँ से निकल चुकी थी| मैंने गाड़ी घुमाई और दोबारा रेस्तरां की तरफ बढ़ चला| रास्ते में मै राहगीरों को देखता जा रहा था कि नेहा दिख जाए पर वह नही मिली|